कौन है वो–४

कौन है वो


गतांक से आगे–
रामेश्वर के घर का माहौल अजब सा था, एक तरफ सुधा की लाश थी तो दूसरी तरफ एक अबोध बालक, उनके घर का चिराग। किसी को समझ नही आ रहा था खुशी मनाएं या गम।
सुधा के मृदु स्वभाव की वजह से वो आसपास मोहल्ले में काफी लोकप्रिय थी, ये बात अलग थी की उसकी सास के कर्कश स्वभाव की वजह से आसपास की महिलाएं कम ही उसके घर आया जाया करती थी। पर फिर भी मिलनसार, सीधी, और वाणी की मृदु सुधा को सभी पसंद करते थे। यही वजह थी जिसने भी उसके देहांत की खबर सुनी वो बेसाख्ता ही उसके घर की ओर निकल पड़ा।
देखते ही देखते आसपास की सभी महिलाएं और अधिकांश पुरुष रामेश्वर के घर पर एकत्र हो चले थे।
सभी के मन में एक ही सवाल कौंध रहा था, अब इस नवजात शिशु को कौन संभालेगा। सबकी सहानुभूति सुधा की इस आखिरी निशानी के साथ बनी हुई थी।
महिलाएं आपस में खुसुर पुसुर करके अलग अलग कयास लगा रहीं थी, क्या होगा, कैसे होगा, सब अपनी अपनी अटकलें और धीमी जुबान में तरह तरह की सलाह भी दे रहीं थी।
इन सब से दूर, मालती और मधु अपने नवजात भाई के पास दबी सहमी सी सुबक रही थी, उनकी व्यथा सुनने वाला कोई नहीं था।
बेचारी मालती बड़ी बहन होने के साथ साथ मां का कर्तव्य  भी निभाने को बाध्य थी। घर के सभी लोगों का ध्यान इस समय जल्द से जल्द सुधा के शव को उसकी गति देने में लगा था।
सारा पुरुष वर्ग पूरी तन्मयता से सुधा के पार्थिव शरीर को पंच तत्व में विलीन करने की प्रक्रिया में जुट गया था। सुधा के मायके खबर भेज दी गई थी परंतु वहां से किसी के आने की उम्मीद नहीं थी।
रामेश्वर को तो मानो सुध ही बिसर गई थी, रह रह कर वो बिलख बिलख कर रोना शुरू कर देता, ऐसे में सोमेश ने सारे कार्यक्रम की बागडोर संभाल रखी थी।
शाम होते होते, सुधा का अंतिम संस्कार पूरे विधिविधान से संपन्न कर दिया गया और सारे पड़ोसी अपने अपने घर की ओर चले गए।
इस बीच सुधा की एक मित्र ने तीनों बच्चों को संभालने की जिम्मेदारी कुछ समय के लिए उठा ली, क्योंकि सुधा की सास तो जग जाहिर कर के बहु के शोक में इतना दुखी थी की उन्हे तो अपनी भी खबर नहीं थी।
जब शाम गहराने लगी तो वो भी दोनो बच्चियों और सुधा की सास से विदा लेकर अपने घर चली गई।

सुधा के जाने के बाद सबसे बड़ी समस्या थी की नवजात शिशु को कौन संभालेगा। बच्चे की दादी को पोता होने की तो बहुत खुशी थी पर एक अबोध बालक को संभालने की जिम्मेदारी उठाने को वो भी तैयार न थी।
आखिरकार सब की सहमति से और घर की खुशी के लिए
मालती को ही अपने छोटे भाई की देखभाल का जिम्मा सौंपा गया, और इसके लिए उसे अपनी पढ़ाई का बलिदान भी देना पड़ा।
इस तरह से हमारी बेचारी नायिका के कमजोर कांधों पर न केवल अपने नवजात भाई की जिम्मेदारी थोप दी गई बल्कि साथ साथ उसके जीवन में शिक्षा का प्रकाश भी रोक दिया गया।
यूं तो गायत्री देवी, सुधा की सास, ने कह दिया की मालती तो सिर्फ उनकी मदद करेगी, बच्चे की देखभाल तो वो ही करने वाली हैं। पर परिवार का हर सदस्य जानता था की सुधा के जाने का सबसे बड़ा बोझ अब मालती को ही सहना है।
दस वर्ष की कच्ची उम्र में ही मालती ने मानो पूरी गृहस्थी का भार उठाना सीख लिया। धीरे धीरे दोनो भाई बहन की पूरी जिम्मेदारी और रसोई के काम का बोझ मालती के नाजुक कंधों पर आ पड़ा। जिसने उसको कच्ची उम्र में ही परिपक्व बना दिया।
पर कहीं न कहीं उसके मन में भी एक छोटी सपने देखने वाली बच्ची जिंदा थी। परंतु जिम्मेदारियों का बोझ उसे असमय ही व्यस्क बना रहा था। वो एक छोटी बच्ची के शरीर में एक व्यस्क बनती जा रही थी।
पढ़ाई के प्रति अपने लगाव की वजह से वो समय निकाल कर अपने दोनो भाई बहन की मदद भी करती और इस तरह खुद को भी शिक्षित करती।
रामेश्वर ने घर वालों के जोर देने के बावजूद दूसरे विवाह से साफ इंकार कर दिया। इस बीच सोमेश का विवाह भी हो गया और घर में एक और महिला का प्रवेश भी हो गया। परंतु मालती की जिम्मेदारियां बदस्तूर जारी रही।

समय अपनी गति से चलता जा रहा था, तीनो बच्चे एक दूसरे के सहारे बड़े होते जा रहे थे। मधु अब 10 वी कक्षा में आ चुकी थी, साथ ही मालती ने भी प्राइवेट विद्यार्थी के रूप में दसवीं का फार्म भर दिया था।
ये मालती की लगन का ही नतीजा था की वो दोनो भाई बहन का ख्याल रखती, घर के काम भी करती और साथ साथ अपनी और दोनो भाई बहन की पढ़ाई पर भी ध्यान देती। मालती का सांवला गहरा रंग और उसके साधारण नैन नक्श से ज्यादा उसके गुणों का चर्चा होता। जो भी उसे देखता उसकी तारीफ करने से ना चूकता।
गृह कार्य में निपुण, मृदु भाषी और सहृदय मालती को सभी लोग बहुत पसंद करते।
अब तो मालती 18 वर्षीय नवयौवना हो गई थी, परंतु चेहरे और हाव भाव से वह अपनी उमर से कहीं ज्यादा व्यस्क दिखाई देती।
जैसा हर घर में होता है 18 की उमर पार करते ही घरवालों को लड़की की शादी की फिक्र होनी शुरू हो जाती है, ऐसा ही कुछ रामेश्वर के मन में भी चलना शुरू हो गया, परंतु बाकी सभी घरवाले इस बारे में थोड़ा अलग ख्याल रखते थे।
भला कोई ऐसी लड़की की शादी क्यों जल्दी करवाना चाहेगा जिसके बलबूते पर पूरा घर संभला हो।
बहरहाल सभी ने अपनी अपनी दलील देनी शुरू कर दी, अभी तो उमर कच्ची है अभी से गृहस्थी का बोझ क्यूं डाला जाए बेचारी पर। अभी तो दसवीं पास किया है, आगे थोड़ा पढ़ लेने दो। भाई बहन को तो देखो दोनो को मालती का ही तो सहारा है, इत्यादि इत्यादि।
पर रामेश्वर ने किसी की बातों पर कान नहीं रखा, उसे समझ आ रहा था की जितनी जल्दी मालती इस घर से विदा होगी उतना जल्दी ही उसके बरसों के कष्टों से छुटकारा मिलेगा। इसलिए सबके विरोध के बावजूद रामेश्वर ने मालती के लिए जोर शोर से लड़का तलाश करना शुरू कर दिया।
शीघ्र ही रामेश्वर की तलाश पूरी होने लगी, आसपास से कुछ रिश्ते मालती के लिए आने शुरू हो गए।
पर हाय री विडंबना, जो भी रिश्ता मालती के गुण सुन कर आता वो उसके साधारण रूप और दबे रंग को देख कर लौट जाता। सबको गोरी चिट्टी सुंदर वधु या पुत्रवधु ही चाहिए थी। सबको शारीरिक सुंदरता से ही मतलब था कोई भी उसके आंतरिक गुणों के लिए उसे अपनाने को तैयार नहीं होता था।
ऐसे में अगर कोई परिवार राजी भी होता तो उन्हे दहेज के रूप में मोटी रकम या फिर बहुत सारी फरमाइशें पूरी चाहिए होती थी, जो कहीं न कहीं रामेश्वर के परिवार के बूते से बाहर थी।
कुछ रिश्ते ऐसे भी आए जो उमर में मालती से बहुत बड़े थे, या फिर कोई विधुर था या तलाक शुदा, जिन से अपनी कमसिन भोली बेटी का रिश्ता जोड़ना रामेश्वर को मंजूर नहीं था।
कुछ ने तो हद ही कर दी मालती की जगह मधु का हाथ मांग लिया, ये सुन कर तो रामेश्वर का गुस्सा सातवें आसमान पर चढ़ गया।
यूंही करते करते 2 बरस और निकल गए, रामेश्वर की चिंताएं और मालती की उमर लगातार बढ़ती चली जा रही थी।
सबसे बड़े दुख की बात ये थी की खुद परिवार के लोग बजाय मालती का मनोबल बढ़ाने के उसको ही दोष देने लगे, खास कर रामेश्वर की माता जी, उन्हे तो एक और मौका मिल गया मालती और सुधा को कोसने का। गायत्री देवी अब दिन रात मालती को मनहूस, अभागी और न जाने किन किन अलंकारों से सम्मानित करने लगी।
हर रिश्ते के लौटने का पूरा ठीकरा बेचारी मालती के सर फोड़ दिया जाता, मानो वो जानबूझ कर रिश्ता ठुकरा रही हो।
जब करीब 10 से ज्यादा रिश्ते मालती को अस्वीकार कर के चले गए तो गायत्री देवी को मालती का रिश्ता पक्का करने के लिए एक उपाय सूझा। उन्होंने तुरत फुरत पूरे परिवार को अपना ये उपाय बताया, हालांकि सभी को इस उपाय से कुछ अच्छा महसूस नहीं हो रहा था, पर गायत्री देवी ने साम दाम दण्ड भेद लगा कर आखिर सबको अपनी योजना को स्वीकार करवा ही लिया।

क्रमश:

आभार – नवीन पहल – ०९.०५.२०२२ 🌹❤️🙏🏻💐

दोस्तों अगले भाग में जानिए, क्या था ये उपाय और क्या ये सफल रहा।

# नॉन स्टॉप 2022


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7 Comments

Haaya meer

10-May-2022 06:27 PM

Amazing

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Neha syed

10-May-2022 11:34 AM

Very nice

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अच्छी कहानी है देखते है आगे क्या होगा।

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